चाणक्य नीति - Chankya Niti - Quotes



आचार्य चाणक्य एक ऐसी महान विभूति थे, जिन्होंने
अपनी विद्वत्ता और क्षमताओं के बल पर भारतीय इतिहास
की धारा को बदल दिया। मौर्य साम्राज्य के संस्थापक
चाणक्य कुशल राजनीतिज्ञ, चतुर कूटनीतिज्ञ, प्रकांड
अर्थशास्त्री के रूप में भी विश्वविख्यात हुए।
इतनी सदियाँ गुजरने के बाद आज भी यदि चाणक्य के
द्वारा बताए गए सिद्धांत ‍और नीतियाँ प्रासंगिक हैं तो मात्र
इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने गहन अध्ययन, चिंतन और
जीवानानुभवों से अर्जित अमूल्य ज्ञान को, पूरी तरह

नि:स्वार्थ होकर मानवीय कल्याण के उद्देश्य से अभिव्यक्त
किया।
वर्तमान दौर की सामाजिक संरचना, भूमंडलीकृत
अर्थव्यवस्था और शासन-प्रशासन को सुचारू ढंग से बताई
गई ‍नीतियाँ और सूत्र अत्यधिक कारगर सिद्ध हो सकते हैं।
चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय से यहाँ प्रस्तुत हैं कुछ अंश
-
1. जिस प्रकार सभी पर्वतों पर मणि नहीं मिलती,
सभी हाथियों के मस्तक में मोती उत्पन्न नहीं होता, सभी वनों में
चंदन का वृक्ष नहीं होता, उसी प्रकार सज्जन पुरुष
सभी जगहों पर नहीं मिलते हैं।
2. झूठ बोलना, उतावलापन दिखाना, दुस्साहस करना, छल-कपट
करना, मूर्खतापूर्ण कार्य करना, लोभ करना, अपवित्रता और
निर्दयता - ये सभी स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं। चाणक्य
उपर्युक्त दोषों को स्त्रियों का स्वाभाविक गुण मानते हैं।
हालाँकि वर्तमान दौर की शिक्षित स्त्रियों में इन
दोषों का होना सही नहीं कहा जा सकता है।
3. भोजन के लिए अच्छे पदार्थों का उपलब्ध होना, उन्हें पचाने
की शक्ति का होना, सुंदर स्त्री के साथ संसर्ग के लिए
कामशक्ति का होना, प्रचुर धन के साथ-साथ धन देने
की इच्छा होना। ये सभी सुख मनुष्य को बहुत कठिनता से
प्राप्त होते हैं।
4. चाणक्य कहते हैं कि जिस व्यक्ति का पुत्र उसके नियंत्रण
में रहता है, जिसकी पत्नी आज्ञा के अनुसार आचरण करती है
और जो व्यक्ति अपने कमाए धन से पूरी तरह संतुष्ट रहता है।
ऐसे मनुष्य के लिए यह संसार ही स्वर्ग के समान है।
5. चाणक्य का मानना है कि वही गृहस्थी सुखी है,
जिसकी संतान उनकी आज्ञा का पालन करती है।
पिता का भी कर्तव्य है कि वह पुत्रों का पालन-पोषण
अच्छी तरह से करे। इसी प्रकार ऐसे व्यक्ति को मित्र
नहीं कहा जा सकता है, जिस पर विश्वास नहीं किया जा सके
और ऐसी पत्नी व्यर्थ है जिससे किसी प्रकार का सुख प्राप्त न
हो।
6. जो मित्र आपके सामने चिकनी-चुपड़ी बातें करता हो और
पीठ पीछे आपके कार्य को बिगाड़ देता हो, उसे त्याग देने में
ही भलाई है। चाणक्य कहते हैं कि वह उस बर्तन के समान है,
जिसके ऊपर के हिस्से में दूध लगा है परंतु अंदर विष भरा हुआ
होता है।
7. जिस प्रकार पत्नी के वियोग का दुख, अपने भाई-बंधुओं से
प्राप्त अपमान का दुख असहनीय होता है, उसी प्रकार कर्ज से
दबा व्यक्ति भी हर समय दुखी रहता है। दुष्ट राजा की सेवा में
रहने वाला नौकर भी दुखी रहता है। निर्धनता का अभिशाप
भी मनुष्य कभी नहीं भुला पाता। इनसे व्यक्ति की आत्मा अंदर
ही अंदर जलती रहती है।
8. ब्राह्मणों का बल विद्या है, राजाओं का बल उनकी सेना है,
वैश्यों का बल उनका धन है और शूद्रों का बल
दूसरों की सेवा करना है। ब्राह्मणों का कर्तव्य है कि वे
विद्या ग्रहण करें। राजा का कर्तव्य है कि वे
सैनिकों द्वारा अपने बल को बढ़ाते रहें। वैश्यों का कर्तव्य है
कि वे व्यापार द्वारा धन बढ़ाएँ, शूद्रों का कर्तव्य श्रेष्ठ
लोगों की सेवा करना है।
9. चाणक्य का कहना है कि मूर्खता के समान यौवन
भी दुखदायी होता है क्योंकि जवानी में व्यक्ति कामवासना के
आवेग में कोई भी मूर्खतापूर्ण कार्य कर सकता है। परंतु इनसे
भी अधिक कष्टदायक है दूसरों पर आश्रित रहना।
10. चाणक्य कहते हैं कि बचपन में संतान
को जैसी शिक्षा दी जाती है, उनका विकास उसी प्रकार
होता है। इसलिए माता-पिता का कर्तव्य है कि वे उन्हें ऐसे
मार्ग पर चलाएँ, जिससे उनमें उत्तम चरित्र का विकास
हो क्योंकि गुणी व्यक्तियों से ही कुल की शोभा बढ़ती है।
11. वे माता-पिता अपने बच्चों के लिए शत्रु के समान हैं,
जिन्होंने बच्चों को ‍अच्छी शिक्षा नहीं दी। क्योंकि अनपढ़
बालक का विद्वानों के समूह में उसी प्रकार अपमान होता है जैसे
हंसों के झुंड में बगुले की स्थिति होती है। शिक्षा विहीन मनुष्य
बिना पूँछ के जानवर जैसा होता है, इसलिए माता-
पिता का कर्तव्य है कि वे बच्चों को ऐसी शिक्षा दें जिससे वे
समाज को सुशोभित करें।
12. चाणक्य कहते हैं कि अधिक लाड़ प्यार करने से बच्चों में
अनेक दोष उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिए यदि वे कोई गलत काम
करते हैं तो उसे नजरअंदाज करके लाड़-प्यार करना उचित
नहीं है। बच्चे को डाँटना भी आवश्यक है।
13. शिक्षा और अध्ययन की महत्ता बताते हुए चाणक्य कहते
हैं कि मनुष्य का जन्म बहुत सौभाग्य से मिलता है, इसलिए हमें
अपने अधिकाधिक समय का वेदादि शास्त्रों के अध्ययन में
तथा दान जैसे अच्छे कार्यों में ही सदुपयोग करना चाहिए।
14. चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति अच्छा मित्र नहीं है उस
पर तो विश्वास नहीं करना चाहिए, परंतु इसके साथ ही अच्छे
मित्र के संबंद में भी पूरा विश्वास नहीं करना चाहिए,
क्योंकि यदि वह नाराज हो गया तो आपके सारे भेद खोल
सकता है। अत: सावधानी अत्यंत आवश्यक है।
चाणक्य का मानना है कि व्यक्ति को कभी अपने मन का भेद
नहीं खोलना चाहिए। उसे जो भी कार्य करना है, उसे अपने मन में
रखे और पूरी तन्मयता के साथ समय आने पर उसे
पूरा करना चाहिए।
15. चाणक्य के अनुसार नदी के किनारे स्थित वृक्षों का जीवन
अनिश्चित होता है, क्योंकि नदियाँ बाढ़ के समय अपने किनारे के
पेड़ों को उजाड़ देती हैं। इसी प्रकार दूसरे के घरों में रहने
वाली स्त्री भी किसी समय पतन के मार्ग पर जा सकती है।
इसी तरह जिस राजा के पास अच्छी सलाह देने वाले
मंत्री नहीं होते, वह भी बहुत समय तक सुरक्षित नहीं रह
सकता। इसमें जरा भी संदेह नहीं करना चाहिए।
17. चाणक्य कहते हैं कि जिस तरह वेश्या धन के समाप्त होने
पर पुरुष से मुँह मोड़ लेती है। उसी तरह जब राजा शक्तिहीन
हो जाता है तो प्रजा उसका साथ छोड़ देती है। इसी प्रकार
वृक्षों पर रहने वाले पक्षी भी तभी तक किसी वृक्ष पर
बसेरा रखते हैं, जब तक वहाँ से उन्हें फल प्राप्त होते रहते हैं।
अतिथि का जब पूरा स्वागत-सत्कार कर दिया जाता है तो वह
भी उस घर को छोड़ देता है।
18. बुरे चरित्र वाले, अकारण दूसरों को हानि पहुँचाने वाले
तथा अशुद्ध स्थान पर रहने वाले व्यक्ति के साथ जो पुरुष
मित्रता करता है, वह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। आचार्य
चाणक्य का कहना है मनुष्य को कुसंगति से बचना चाहिए। वे
कहते हैं कि मनुष्य की भलाई इसी में है कि वह
जितनी जल्दी हो सके, दुष्ट व्यक्ति का साथ छोड़ दे।
19. चाणक्य कहते हैं कि मित्रता, बराबरी वाले व्यक्तियों में
ही करना ठीक रहता है। सरकारी नौकरी सर्वोत्तम होती है और
अच्छे व्यापार के लिए व्यवहारकुशल होना आवश्यक है।
इसी तरह सुंदर व सुशील स्त्री घर में ही शोभा देती है।

Author : Unknown ~ The Fact That Might You Don't Know

Article चाणक्य नीति - Chankya Niti - Quotes Is Published By Unknown On The Day Monday, 10 June 2013. Leave Comment 0 Comment: In Postचाणक्य नीति - Chankya Niti - Quotes
 

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